Saturday, November 17, 2018

अयोध्या का असल इतिहास जानते हैं आप?


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अयोध्या का असल इतिहास जानते हैं आप?
प्रोफ़ेसर हेरम्ब चतुर्वेदी पूर्व विभागाध्यक्ष (इतिहास), इलाहाबाद विश्वविद्यालय
·         14 नवंबर 2018
“नामकरण वस्तुतः उसी का अधिकार होता है जो नए नगर, स्थान, इमारत की स्थापना-निर्माण कर रहा हो? और यदि किसी स्थान का नाम परिवर्तन करना भी हो तो उसके निर्णय में जनतंत्र में 'जन' की भूमिका अवश्य होनी चाहिए और इसका सीधा-सा तरीका'जनमत-संग्रह'का प्रावधान ह
भारतीय संविधान की प्रस्तावना का भी मूल भाव यही था- "हम भारत के लोग", यहाँ लोग सिर्फ़ शासक-प्रशासक-पुरोहित वर्ग नहीं है. ये सवाल लाज़िमी है कि क्या किसी 'जनमत-संग्रह' के जरिए ये नाम परिवर्तन हो रहे हैं या शासन-प्रशासन की सनक और हनक से?
न्याय'के विषय में यही मान्यता है कि वह सिर्फ़ निष्पक्ष रूप से प्रदान ही नहीं किया जाए, अपितु ऐसा होता हुआ प्रतीत भी हो? इन नाम-परिवर्तनों ('प्रयाग राज' और 'अयोध्या') में क्या ऐसा न्यायिक और तार्किक जनतांत्रिक सिद्धांत/अथवा पद्धति का पालन सुनिश्चित किया गया?”

अयोध्या और प्रतिष्ठानपुर (झूंसी) के इतिहास का उद्गम ब्रह्माजी के मानस पुत्र मनु से ही सम्बद्ध है. जैसे प्रतिष्ठानपुर और यहां के चंद्रवंशी शासकों की स्थापना मनु के पुत्र ऐल से जुड़ी है, जिसे शिव के श्राप ने इला बना दिया था, उसी प्रकार अयोध्या और उसका सूर्यवंश मनु के पुत्र इक्ष्वाकु से प्रारम्भ हुआ.
बेंटली एवं पार्जिटर जैसे विद्वानों ने "ग्रह मंजरी"आदि प्राचीन भारतीय ग्रंथों के आधार पर इनकी स्थापना का काल ई.पू. 2200 के आसपास माना है. इस वंश में राजा रामचंद्रजी के पिता दशरथ 63वें शासक हैं.
अयोध्या का महत्व इस बात में भी निहित है कि जब भी प्राचीन भारत के तीर्थों का उल्लेख होता है तब उसमें सर्वप्रथम अयोध्या का ही नाम आता है: "अयोध्या मथुरा माया काशि काँची ह्य्वान्तिका, पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिका."
यहाँ यह भी ध्यान देने वाली बात है कि इन प्राचीन तीर्थों में 'प्रयाग'की गणना नहीं है! अयोध्या के महात्म्य के विषय में यह और स्पष्ट करना समीचीन होगा कि जैन परंपरा के अनुसार भी 24 तीर्थंकरों में से 22 इक्ष्वाकु वंश के थे.
इन 24 तीर्थंकरों में से भी सर्वप्रथम तीर्थंकर आदिनाथ (ऋषभदेव जी) के साथ चार अन्य तीर्थंकरों का जन्मस्थान भी अयोध्या ही है. बौद्ध मान्यताओं के अनुसार बुद्ध देव ने अयोध्या अथवा साकेत में 16 वर्षों तक निवास किया था.
ये हिन्दू धर्म और उसके प्रतिरोधी सम्प्रदायों- जैन और बौद्धों का भी पवित्र धार्मिक स्थान था. मध्यकालीन भारत के प्रसिद्ध संत रामानंद जी का जन्म भले ही प्रयाग क्षेत्र में हुआ हो, रामानंदी संप्रदाय का मुख्य केंद्र अयोध्या ही हुआ.
उत्तर भारत के तमाम हिस्सों में जैसे कोशल, कपिलवस्तु, वैशाली और मिथिला आदि में अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश के शासकों ने ही राज्य कायम किए थे. जहाँ तक मनु द्वारा स्थापित अयोध्या का प्रश्न है, हमें वाल्मीकि कृत रामायण के बालकाण्ड में उल्लेख मिलता है कि वह 12 योजन-लम्बी और 3 योजन चौड़ी थी.
गहरा है इतिहास
सातवीं सदी के चीनी यात्री ह्वेन सांग ने इसे 'पिकोसिया' संबोधित किया है. उसके अनुसार इसकी परिधि 16ली (एक चीनी 'ली' बराबर है 1/6 मील के) थी.
संभवतः उसने बौद्ध मतावलंबियों के हिस्से को ही इस आयाम में सम्मिलित किया हो. आईन-ए-अकबरी में इस नगर की लंबाई 148 कोस तथा चौड़ाई 32 कोस उल्लिखित है.
सृष्टि के प्रारम्भ से त्रेतायुगीन रामचंद्र से लेकर द्वापरकालीन महाभारत और उसके बहुत बाद तक हमें अयोध्या के सूर्यवंशी इक्ष्वाकुओं के उल्लेख मिलते हैं. इस वंश का बृहद्रथ, अभिमन्यु के हाथों 'महाभारत' के युद्ध में मारा गया था.
फिर लव ने श्रावस्ती बसाई और इसका स्वतंत्र उल्लेख अगले 800 वर्षों तक मिलता है. फिर यह नगर मगध के मौर्यों से लेकर गुप्तों और कन्नौज के शासकों के अधीन रहा. अंत में यहां महमूद गज़नी के भांजे सैयद सालार ने तुर्क शासन की स्थापना की. वो बहराइच में 1033 ई. में मारा गया था.
इसके बाद तैमूर के पश्चात जब जौनपुर में शकों का राज्य स्थापित हुआ तो अयोध्या शर्कियों के अधीन हो गया. विशेषरूप से शक शासक महमूद शाह के शासन काल में 1440 ई. में.
1526 ई. में बाबर ने मुग़ल राज्य की स्थापना की और उसके सेनापति ने 1528 में यहाँ आक्रमण करके मस्जिद का निर्माण करवाया जो 1992 में मंदिर-मस्जिद विवाद के चलते रामजन्मभूमि आन्दोलन के दौरान ढहा दी गई.
अकबर के शासनकाल में प्रशासनिक पुनर्गठन के फलस्वरूप आए राजनीतिक स्थायित्व के कारण अवध क्षेत्र का महत्व बहुत बढ़ गया था. इसके भू-राजनीतिक एवं व्यापारिक कारण भी थे.
अकबर का अवध सूबा
गंगा के उत्तरी भाग को पूर्वी क्षेत्रों और दिल्ली-आगरा को सुदूर बंगाल से जोड़ने वाला मार्ग यहीं से गुज़रता था. अतः अकबर ने जब 1580 ई. में अपने साम्राज्य को 12 सूबों में विभक्त किया, तब उसने 'अवध'का सूबा बनाया था और अयोध्या ही उसकी राजधानी थी.
यहाँ प्रसंगवश बताते चलें कि आधुनिक भारत में अयोध्या के प्रामाणिक इतिहासकार लाला सीताराम 'भूप' (जिनकी पुस्तक 'अयोध्या का इतिहास'राम जन्मभूमि प्रकरण में माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय में भी सर्वाधिक उद्धृत है) अयोध्या के मूल निवासी होने के नाते गर्व के साथ अपने नाम से पहले सदैव "अवध वासी" लिखते थे.
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1707 ई. में औरंगज़ेब की मृत्योपरांत जब मुग़ल साम्राज्य विघटित होने लगा, तब अनेक क्षेत्रीय स्वतंत्र राज्य उभरने लगे थे. उसी दौर में अवध के स्वतंत्र राज्य की स्थापना भी हुई. 1731 ई. में मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह ने इस क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए अवध का सूबा अपने शिया दीवान-वज़ीर सआदत खां को प्रदान किया था.
इसका नाम मोहम्मद अमीन बुर्हानुल मुल्क था और उसने अपने सूबे के दीवान दयाशंकर के माध्यम से यहाँ का प्रबंधन संभाला. इसके बाद उसका दामाद मंसूर अली 'सफदरजंग' की उपाधि के साथ अवध का शासक बना.
उसका प्रधानमंत्री या प्रांतीय दीवान इटावा का कायस्थ नवल राय था. इसी सफदरजंग के समय में अयोध्या के निवासियों को धार्मिक स्वतंत्रता मिली. इसके बाद उसका पुत्र शुजा-उद्दौलाह अवध का नवाब-वज़ीर हुआ (1754-1775 ई.) और उसने अयोध्या से 3 मील पश्चिम में फैज़ाबाद नगर बसाया.
यह नगर अयोध्या से अलग और लखनऊ की पूर्व छाया बना. वस्तुतः इसी शुजा-उद्दौलाह के मरणोपरांत (1775 ई.) फैज़ाबाद उनकी विधवा बहू बेगम (इनकी मृत्यु 1816 ई में हुई) की जागीर के रूप में रही और उनके पुत्र आसफ़-उद्दौल्लाह ने नया नगर लखनऊ बसाकर अपनी राजधानी वहाँ स्थानांतरित कर ली. ये 1775 ई. की बात है.
अयोध्या, फैज़ाबाद और लखनऊ तीन पृथक नगर हैं जो अवध के नवाब-वज़ीरों की राजधानी रही. इस राज्य का संस्थापक चूंकि मुग़लों का दीवान-वज़ीर था, अतः अपने शासन की वैधता के लिए वे अपने-आप को "नवाब-वज़ीर" कहते रहे.
वाजिद अली शाह अवध का अंतिम नवाब-वज़ीर था. उसके बाद उनकी बेगम हज़रत महल और उनका पुत्र बिलकिस बद्र सिर्फ़ आंग्ल सत्ताधीशों से साल 1857-58 के दौरान लड़ते रहे. लेकिन 1856 के आंग्ल प्रभुत्व से अवध को मुक्त कराने में असफल रहे.
इसी वाजिद अली शाह के समय 'सांप्रदायिक विवाद'सर्वप्रथम हनुमानगढ़ी में उठा था और नवाब वाजिद अली शाह ने अंततः हिन्दुओं के हक़ में निर्णय देते हुए लिखा था: "हम इश्क़ के बन्दे हैं मज़हब से नहीं वाकिफ़/ गर काबा हुआ तो क्या, बुतखाना हुआ तो क्या?"
इस निष्पक्ष निर्णय पर तत्कालीन आंग्ल गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौज़ी ने मुबारकबाद भी प्रेषित की थी. इस प्रकार फैज़ाबाद के नाम परिवर्तन से इतिहास के विद्यार्थियों-शोधार्थियों के समक्ष यही समस्या आएगी कि अयोध्या का इतिहास क्या है? फैज़ाबाद का विकास-क्रम क्या है? क्या इसी फैज़ाबाद के नक़्शे पर ही पुराने लखनऊ की संरचना की कल्पना की गयी थी और कैसे?
समस्या इतिहास के छात्रों की
नामकरण वस्तुतः उसी का अधिकार होता है जो नए नगर, स्थान, इमारत की स्थापना-निर्माण कर रहा हो? और यदि किसी स्थान का नाम परिवर्तन करना भी हो तो उसके निर्णय में जनतंत्र में 'जन' की भूमिका अवश्य होनी चाहिए और इसका सीधा-सा तरीका'जनमत-संग्रह'का प्रावधान है.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना का भी मूल भाव यही था- "हम भारत के लोग", यहाँ लोग सिर्फ़ शासक-प्रशासक-पुरोहित वर्ग नहीं है. ये सवाल लाज़िमी है कि क्या किसी 'जनमत-संग्रह' के जरिए ये नाम परिवर्तन हो रहे हैं या शासन-प्रशासन की सनक और हनक से?
'न्याय'के विषय में यही मान्यता है कि वह सिर्फ़ निष्पक्ष रूप से प्रदान ही नहीं किया जाए, अपितु ऐसा होता हुआ प्रतीत भी हो? इन नाम-परिवर्तनों ('प्रयाग राज' और 'अयोध्या') में क्या ऐसा न्यायिक और तार्किक जनतांत्रिक सिद्धांत/अथवा पद्धति का पालन सुनिश्चित किया गया?
यदि हम मुस्लिम शासकों को ग़लत करता मान लें तो क्या जो वे 12वीं से 17वीं शताब्दियों तक करते रहे, वही हम 21वीं सदी में करते हुए विकसित, अधिक सभ्य दिख रहे हैं?
भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि क्या बन रही है. क्या यह देश और उसकी राष्ट्रीय एकता-अखंडता के लिए उपयुक्त और सराहनीय कदम है? क्या एकांकी संस्कृति हमारी विरासत है? क्या हम जिस "हिन्दू संस्कृति" की बात करते नहीं थक रहे, वह "वसुधैव कुटुम्बकं" के सिद्धांत में आस्था की पक्षधर नहीं थी/है?
'सनातनी' इसीलिए सतत हैं क्योंकि वे रूढ़िवादी नहीं रहे! तभी ना इकबाल ने लिखा "कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी/ सदियों रहा है दुश्मन दौरे-जहाँ हमारा?"
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Sunday, November 11, 2018

THE #ALL INDIA CONGRESS OF MADHYA PRADESH IS TOO LATE IN THEIR CONVICTION, COURAGE AND COUNTER AGAINST #RSS :



THE #ALL INDIA CONGRESS OF MADHYA PRADESH IS TOO LATE IN THEIR CONVICTION, COURAGE AND COUNTER AGAINST #RSS :
Enough damage to the unity of the country, the constitution and coexistence among various peace loving races is already done. However, nerve is shown which is  urgently a  right , very phenomenal and brave  step. The strength and very long rope was given by Congress only. Only they have to rectify it .The people must be told who are they and what are their hidden and now open agenda . First the congress men and then the innocent Indians must be educated  in clear terms what they really mean ,  stand for and intend to do?
 The name change furry of cities are  a crime committed against human history and a criminal work of criminally bent of minds Their bluffs and brutes in the garb of  their cultural socio organization propoganda are a fascist movement which is given  in their  following in lines of their Pujya Guruji M.S.Golwalkar .These must be brought to fore with full force. There are people to support it and there are people to deport them too. #Modi has allowed them to infiltrate in all walk of life; civil and public administration.
“...the foreign races in Hindustan must either adopt the Hindu Culture and language, must learn to respect and hold in reverence Hindu religion ,must entertain no idea but those of the  glorification of the Hindu race and culture, i.e of the Hindu nation and must lose their separate existence to merge in the Hindu race, or may stay in the country ,wholly subordinate to the Hindu nation, claiming nothing, deserving no privilege ,far less preferential treatment –not even citizen`s right`s. There is at least, should be no other course of them to adopt.”
The country men, enlightened Indian and Indian Media need to re-debate thoroughly   over the following text and enlighten us to which direction should Indian electorate move?

#RSS AND #BJP ARE  FLOCK OF DERANGED AND TURBULENT MINDS.
I find them a flock of deranged and turbulent minds. The personality of a mix of constant defiance, out right rejection of treasured value based intake from others  and in their past and present  .Ask them a question related with their  thoughts and actions ,the pet answer one gets is that he is .......... with his history of denounced and renounced events of life span and then begins abuse around their invented and the same repeated episodes which can invites wraths of ELECTORATE now which alone CAN  redirect ones cult and culture of life in light of our constitution and governance .
ALL OF THEM POSSESSA VERY CONFLICTING OFFENSIVE PERSONALITY TRAITS
 All of them including their youth, political , educational and religious wings posses a very conflicting personality traits offensive to their own peace, health and prosperity. This approach shuts up the windows to draw and learn anything worthwhile .Such filthy narration towards life and relationship becomes selfish and ante dose for their own refinements. This tends to inculcate in them the lack of analytical bent of thinking and decision makings. The end result is constant inbuilt fight in their chemistry with and without reason .This gives birth to an obstinate and arrogant  character  .
FURRY OF ANGERS LADDEN WITH JEALOUSY IN PRIVATE AND PUBLIC
 We are more worried of sustaining our  integrity and credibility.  One can see many of them getting treated in psychiatrist care on government. Sufferings you invite because o f your doings, arrogance and vengeance against fellow friends .No suit ,palatial abode ,bank balance ,high status ,identifiable positions  and chariots pulled by Arabian horses ,waving crowds here and there can offer you a blend of cheerful living  .You collapse and collapses your inner too.
THE THREE GIANTS IN PARTICULAR ARE ALSO FOUND TO BE LEADING V.CONFLICTING LIVES
The #RSS Chief Mohan Bhagwat #Amit Shah and his right hand #Narendra Modi  are also found to be leading conflicting lives and conflicts are their contributions among youths , saints of their  choice in this country, in the temples ,mosques and churches   .Recall their life full of strife which began in the year 2002 and ended with its bloom and culmination in the year 2013 after they shifted to Capital Delhi and is continuing unending .Their course of action is well directed towards Bluff and building castle in the air. How much burden has been loaded on the back of their mother land : all ill conceived ,misdirected ,mismanaged ,chaotic and divisive from all standards. They are bent upon not to examine their errors and work for harmony. The end is that the they   will meet the same fate of annoyance and revenge which will tend to suffer them mentally politically ,socially ,spiritually and physically .
 ABSENCE OF REMORSE AND REPENTANCE ,
In the absence of remorse and repentance, they seem to be dancing to the tune of arrogance and defiance .Whatever we see on the surface in form of violence, social conflicts , injustice ,public outrage ,public lies ,is free display of their masters magic euphoria. The eagles keeps flying tirelessly looking for their preys on the soil ,in the sky ,in history ,in friends and foes. They find peace in#Congress Mukt Bharat ,dethroning One Family Kingdom(baseless ),all joining hands to hang him due to Economic Offences  (invent of a fascist minds) .
WE NEED TO SELECT OUR FIGURE OF HEADS GIFTED WITH HEADS AND HEARTS.
Recently I was spell bound to hear from Arun Shourie ,a well known dignified figure in the political helm of the country aswell as in the rudder of journalism world  and company of renowned  authors  about his  limit of patience and sharing of delivery of charming experiences about his ailing daughter and wife ,still hale and hearty to give his very valuable free opinions  in public and press. We need to select our figure of heads gifted with heads and hearts. #Yaswant Sinha,Shatrugan Sinha and #Arun Shourie on one hand and many noted Indians ,authors ,lawyers ,poets, scribes ,anchors ,many other channels (some ousted and raided)  TV canters have exhibited their moral powers.


Friday, November 9, 2018

इतिहास के झरोखे से:- (क्या बाबरी मस्जिद राम मंदिर तोड़ कर बनी ?)




इतिहास के झरोखे से:- (क्या बाबरी मस्जिद राम मंदिर तोड़ कर बनी ?)

संघ और भगवा गिरोह का आरोप है कि सन् 1528 में मुगल बादशाह के सिपहसालार मीर बाकी ने राम जन्मभूमि पर बने मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई।

तब मेरे मन में यह सवाल उठा कि तब क्या इस देश का बहुसंख्यक समाज इतना नपुंषक था कि अपने अराध्य देव राम के जन्मस्थान जैसे महत्वपुर्ण स्थान पर बने मंदिर को टूटते देखता रहा और ना उसने इसका विरोध किया ना आंदोलन ? ध्यान दीजिए कि तब इस देश में मुसलमानों की संख्या बेहद कम ही थी बल्कि ना के बराबर थी। और इतिहास में मंदिर टूटने पर विद्रोह होने या विरोध प्रदर्शन करने का कोई प्रमाण संघी साहित्यकार और संघी इतिहासकारों की पुस्तकों में भी नहीं।

तब मेरे मन में सवाल आया कि यदि उसी जगह राम ने जन्म लिया और वहाँ मंदिर बना तो वह सुनसान जगह अयोध्या शहर से इतनी दूर क्युँ ? रामजनकी महल , कनक भवन और हनुमान गढी से इतना दूर जाकर रानी कौशल्या के राम को जन्म देने का कोई कारण था या यह झूठ गढा गया क्युँकि यदि जन्म वहीं हुआ और उस स्थान पर मंदिर बना तो उसके आसपास एक डेढ़ किलोमीटर तक कोई आबादी क्युँ नहीं ? क्या रानी कौशिल्या जंगल में राम को जन्म देने गयीं ?

इस सवाल का जवाब ढूढने के लिए मैंने मुगल पीरियड के आसपास और उनके बाद के हिन्दूवादी महापुरुषों और उनके व्याख्यानों पर अध्ययन किया , और अध्ययन किया उन हिन्दू राजाओं और सिख महापुरुषों पर क्युँकि सिख धर्म तो मुगलों के समय ही और उनसे लड़कर ही फैला।

फिर मुझे मिले कुछ नाम

गुरु गोविंद सिंह जी , वीर शिवा जी , महर्षी दयानंद जी , स्वामी विवेकानंद जी , महात्मा गाँधी जी , जवाहर लाल नेहरू जी , सरदार पटेल जी , सावरकर , गोवलकर , हेडेगवार , श्यामा प्रसा मुखर्जी , पंडित दीन दयाल उपाध्याय और वह अंग्रेज तथा वामपंथी और संघी इतिहासकार जिन्होंने मुगलों का इतिहास लिखा।

सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी "पटना साहेब" में पैदा हुए और उस दौर में मुगलों से 14 युद्ध लड़े जिसमें उनके चार बेटे मार दिए गये , पटना से आते जाते अयोध्या पड़ता ही है पर उन्होंने कहीं यह नहीं कहा ना लिखा कि उनके राम के मंदिर को तोड़कर बाबर ने मस्जिद बनावाई। जाप साहिब , अकाल उस्तत , बचित्र नाटक , चण्डी चरित्र के 4 भाग , शास्त्र नाम माला , अथ पख्याँ चरित्र लिख्यते , खालसा महिमा जैसी रचनाओं में मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने का एक शब्द कहीं नहीं लिखा , और यही नहीं उन्होंने मुगल शासक औरंगजेब को पत्र लिखा "ज़फ़रनामा" , उसमें भी मुगलों के इस कृत्य का कोई ज़िक्र नहीं।
शिवा जी सारा जीवन मुग़लों से लड़ते रहे उन्होंने कहीं नहीं लिखा या कहा कि राम के मंदिर को तोड़ कर बाबर ने मस्जिद बनाई।


महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती जिनका जन्म 1824 और मृत्यु 1883 में हुई उनसे बड़ा हिन्दूवादी कौन होगा ? उन्होंने तो फैजाबाद में ही खड़े होकर सभी धर्म के लोगों से शास्त्रार्थ करते थे पर उन्होंने कहीं रह व्याख्यान नहीं दिया ना कहीं लिखा कि राम मंदिर तोड़कर बाबर ने बाबरी मस्जिद बनाई। उनकी लिखी किताबों संस्कृत , रत्नमाला,पाखण्ड खण्डन , ऋग्वेद भाष्य , वेद भाष्य भूमिका ,अद्वैतमत का खण्डन , पंचमहायज्ञ विधि वल्लभाचार्य मत का खण्डन आदि में एक शब्द भी दिखा दीजिए कि बाबर ने राम का मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाई।

स्वामी विवेनानंद से बड़ा इस देश में हिन्दू प्रचारक और हिन्दुत्ववादी कौन हुआ है जिन्होंने शिकागो में जाकर सनातन धर्म के लिए जो व्याख्यान दिया उसे आज तक का सबसे शानदार व्याख्यान कहा जाता है।

उन स्वामी विवेकानंद ने अपनी लिखी 200 किताबों ज्ञानयोग · हमारा भारत · आत्मानुभूति तथा उसके मार्ग · हिन्दू धर्म · शिकागो वक्तृता · भगवान बुद्ध तथा उनका सन्देश · हे भारत उठो जागो · युवकों के प्रति · भारतीय व्याख्यान · कर्मयोग · मरणोत्तर जीवन · सार्वलौकिक नीति तथा सदाचार · व्यक्तित्व का विकास · शिक्षा · प्राच्य और पाश्चात्य · वेदान्त · धर्मविज्ञान · महापुरुषों की जीवनगाथाएँ · विविध प्रसंग · राजयोग · विवेकलहरी · परिव्राजक मेरी भ्रमण कहानी · नारद भक्तिसूत्र एवं भक्तिविवेचन · मेरा जीवन तथा ध्येय · सरल राजयोग · प्रेमयोग · मेरी समर-नीति · मन की शक्तियाँ तथा जीवन-गठन की साधनाएँ · सूक्तियाँ एवं सुभाषित · पवहारी बाबा · नया भारत गढ़ो · वर्तमान भारत · हिन्दू धर्म के पक्ष में · व्यावहारिक जीवन में वेदान्त · जाति संस्कृति और समाजवाद · देववाणी · ध्यान तथा इसकी पद्धतियाँ · धर्मतत्त्व · भारत और उसकी समस्याएँ · भगवान श्रीकृष्ण और भगवद्गीता · भक्तियोग · अग्निमन्त्र · चिन्तनीय बातें · भारत का ऐतिहासिक क्रमविकास एवं अन्य प्रबंध · आत्मतत्त्व · भारतीय नारी में कहीं एक शब्द नहीं लिखा कि बाबर ने उनके अराध्य देव "राम" के मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाई।

महात्मा गाँधी जिनके अंतिम सासों में भी "हे राम" था ,
 जिन्होंने "सत्य के प्रयोग" किए इस देश में "सत्य अहिंसा और प्रेम" का एक नया अध्याय लिखा उन्होंने भी कभी कहीं एक शब्द ना बोला ना लिखा कि उनके राम के मंदिर को गिराकर बाबर ने मस्जिद बनाई।

इस देश के इतिहास को प्रमाणित करने वाली पुस्तक"डिस्कवरी आफ इंडिया" लिखने वाले और इस देश में सबसे पहले मुगलों को आक्रमणकारी कहने वाले देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की तमाम पुस्तकों में ना कहीं यह लिखा कि राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गयी।
सरदार वल्लभ भाई पटेल
जो आज कल संघियों के प्रिय हैं उनका कोई बयान कोई किताब नहीं कि बाबर ने राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई , बल्कि वह तो बाबरी मस्जिद में मुर्ति रखे जाने के ही खिलाफ़ थे और उसी क्षण मुर्तियों को वहाँ से हटाने के पक्ष में थे पर सहिष्णु हिन्दू और ढुलमुल यकीन नेहरू ने ऐसा होने नहीं दिया।

अब आइए रामचरित मानस के आधुनिक रचईता "गोस्वामी तुलसीदास"
पर जिन्होंने अयोध्या के सरयू नदी के तट पर बैठ कर एक से एक 23 रचनाएँ कीं
1- रामचरितमानस , 2- रामललानहछू 3- वैराग्य-संदीपनी 4- बरवै रामायण , 5-पार्वती-मंगल , 6-जानकी-मंगल , 7- रामाज्ञाप्रश्न , 8-दोहावली, 9-कवितावली , 10- गीतावली 11- श्रीकृष्ण-गीतावली 12- विनयपत्रिका, 13- सतसई 14- छंदावली रामायण 15-कुंडलिया रामायण 16- राम शलाका , 17-संकट मोचन , 18- करखा रामायण ,19-रोला रामायण , 20-झूलना , 21- छप्पय रामायण , 22-कवित्त रामायण, 23-कलिधर्माधर्म निरुपण

और इतने बड़े रामभक्त गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी इन 23 रचनाओं में कहीं एक शब्द नहीं लिखा कि बाबर ने उनके अराथ्य देव राम का मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनवाया।

संघियों और भगवा आतंकियों का झूठ देखिए कि उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास के दोहों से मिलते जुलते रस में एक नया दोहा बाबरी मस्जिद के लिए लिख कर यह झूठ फैला दिया कि यह गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी पुस्तक "तुलसी शतक" में लिखा है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि "तुलसी शतक" नाम की कोई पुस्तक गोस्वामी तुलसीदास ने कभी लिखी ही नहीं , यह देखिए फेक दोहा

रामजनम महीन मंदिरहिं, तोरी मसीत बनाए।
जवहि बहु हिंदुन हते, तुलसी किन्ही हाय।।

दल्यो मीरबाकी अवध मंदिर राम समाज।
तुलसी ह्रदय हति, त्राहि त्राहि रघुराज।।

रामजनम मंदिर जहँ, लसत अवध के बीच।
तुलसी रची मसीत तहँ, मीरबांकी खाल नीच।।

रामायण घरी घंट जहन, श्रुति पुराण उपखान।
तुलसी जवन अजान तहँ, कइयों कुरान अजान।।

यही नहीं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्थापना दिवस 27 सितंबर 1925 से लेकर 1984 तक राम मंदिर और बाबरी मस्जिद पर कभी एक बयान नहीं दिया।

और तो और संघ के सबसे ज़हरीले गोवलकर , सावरकर , बलिराम हेडेगवार , पंडित दीन दयाल उपाध्याय ,श्यामाप्रसाद मुखर्जी कि सभी सैकड़ों ज़हर उगलती किताबों को पढ़ लीजिए उसमें भी कभी यह नहीं कहा कि अयोध्या में राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गयी। और तो और 60 साल तक बाबरी मस्जिद संघ के एजेन्डे में कभी नहीं रहा ना कभी संघ ने यह कहा कि इस देश में फला जगह राम मंदिर तोड़कर बाबर ने मस्जिद बनवाई।
स्पष्ट है कि बाबर 1984 के बाद अयोध्या आया और लाल कृष्ण आडवाणी की मौजूदगी में मंदिर तोड़ा और मस्जिद बनाकर फिर मर गया।
सोचिएगा कि इस झूठ पर बना "राम मंदिर" श्रीराम को कितना स्विकार्य होगा ?