सबकुछ उल्टा पुल्टा,केवल उथल पुथल ही चारो ओरे!
यह लानत किस
ओरे ले जाये
गी भगवान या
तो #मोहन भागवत
साहब ही जानते
हैं.
सबकुछ उल्टा पुल्टा,केवल उथल पुथल ही चारो ओरे .यह प्रातः आठ बजे का हैदराबाद शहर का अनुभव . दिनांक तेरह स्थान उप्पल रिंग रोड .ढाई घंटे का कटु अनुभव .देखतेही और झेलते ही बना.इक्कीसवी शताब्दी अर्थात वर्ष २०१४ .जगह जगह यात्रियों के बैठने की सुन्दर सुविधा वाला शहर. सड़कें लगभग छह से आठ lane की दरमियान में मेट्रो ओवर पिल्लर्स और न दनiती हुयी trains की योजना.फिर सब कुछ उल्टा पुल्टा .सड़कों की समस्त लेन बसेस ,कारों के काफ्ले से ,दोपहयों के भीड़ भाड़ से,बसों में तिल रखने की जगह नहीं.पैसेंजर्स भागकर इन के नज़दीक पहुँचते और फिर वापस ,थोड़ी देर में इन सब को अपने सेल फ़ोन का सहारा लेना पड़ता सुन ने और समझने का सवाल ही नहीं .आँख धूल से, कान शोरे से,बगल् में chayevale वाले की संगीत ने हालत को और भी नाकारा बना रख्हा था.एक एक लम्हा नरक का जीता जगता आभाष दे रहाथा.बूढ़ों की हालत देखते ही बनती थी. काम पर जाने वाले महिलाओं की हालत का बयां बेकार ..नव जवान महिलाओं की भीड़ भी बहुत.भागम भाग.
न तो विवाह
का ,और न इस का औसर रहगया न ोपयुक्त समय ही बाकी रहा .सब कुछ जुदा होता होवा ,सब कुछ लूटता हुवा .न शादी की उम्र ,न चेहरे पर शबाब की रौनक सब कुछ केवल
पेट पूजा का परिणाम .सवास्थ और स्वस्थ
भोजन दूर दूर तक नहीं . आखिर यह सब
कया इसी का नाम विकास है, किया इसीका नाम विकास
है,अथवा हम विनाष की तरफ रवां और दावं हैं.एकबात कहना भूल गया.जिस स्थित को मैंने देखा उस दसा में महिलाओं या पुरुषों के आदर्श लिबास का प्रश्न ही नहीं महिलाओं के सर पर दुपट्टा या उनके स्तानो पर दुपंट्टा हो ही नहीं सकती .अधिकांश लोग अष्ठ कुम्भी दिखाई देरहेथा.मोदी योंतो झूट बोलते हैं.उनका कुचक्र देश को कोई भी राहत नहीं देसकता.राष्ट्रीय सोयं सेवक सघ का ढिढोरा केवल और केवल कहने और लिखने के लिए है.यह लानत किस ओरे ले जाये गी भगवान या तो मोहन भागवत साहब ही जानते हैं.भारतमाता की जय.एक सौ शहर होने दीजीए फिर आप अपनी और देश की रौनक देखते ही रहजायें गए .

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