Monday, April 27, 2015

माटी कहे कुम्हार से तू क्या रौंदे मोए . एक दिन ऐसा आएगा मैं रौंदूँ गी तोए

माटी  कहे  कुम्हार  से  तू  क्या     रौंदे  मोए .
एक  दिन  ऐसा  आएगा    मैं  रौंदूँ  गी  तोए
इन  प्रiकिर्तिक   आपदाओं  से  हम  सब  कुछ  सीखते  हैं  .भुक्स्खलन  से  लेकर  भूचाल  तक  ,भूख  से  लेकर  प्यास    तक ,सरकार  की  असफलताओां    से  लेकर ,पडोसी  देश   की  तात्कालिक  ऐतिहासिक  मदद  तक  ,हिमालयन  क्वाके  से  लेकर  परोसी  देशों  की  हिमालयन  केक  तक , , लाशो  से  ले कर  नंगी  बेकफ़न  लाशों  तक  ,एवेर्स्ट  की  चोटी पर  चढ़ने से लेकर  नीचे  गिरने  तक , पर्यटकों  से  लेकर  उन  के  सपनो  को  मिटटी  में  मिलते  तक ,बिलखते  बचूं  से  लेकर  उनके  अनाथ  /यतीम  होने  तक , स्वांग  से  लेकर  दुकानदारों  के  ढोंग  तक  ,इन सब  की  चर्चाएं   बिना  विराम   चलते  रहने तक   ,इन  सबके  आधुनिक  उपचार  से  लेकर  खुनी ब्यापार  तक  ,और  अत्यंत   संजीदगी  से  विचार  होता  है .

घर  होते  हुए   भी  बेघर  होने  तक ,सोने  चंडी  के  बर्तन  होते  हुए  भी  पत्तल  में  खाने  तक  ,इन का मार्मिक  दृश्य  पेश  किया   जाता  है  .हिमालयन  ब्लंडर  ही  ब्लंडर  की  चर्चा  देखि और सुनी  जाती  हैफिर  थोड़े  दिनों  में  भूल ही नहीं जाते बल्कि पाप का व्यापर चल पड़ता है.(PART II)

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