"भारत हमारा धर्म और संविधान हमारी पवित्र ग्रन्थ
."प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी
के स्वर्णिम उद्गार
.
काश
यह सच
होता
.क्या #आरएसएस और# मोहन
भागवत ,#भारतीय जनता पार्टीऔर#
विश्व
हिन्दू
परिषद
के
गले
उतर पायेगी?
संविधान का उपहार
तो
किसी
विदेश
के
राष्ट्रपति
को
देते
हुवे
नहीं देखा !गीता को
देते
हुवे
अवश्य देखा.. कल के
सारगर्भित भाषण में संस्कृत
श्लोको
का
अनुबाद
क्यामाने रखता?क्या ऐसी
सुन्दर
पंकिओं
का
अन्य
ग्रंथो
में
आभाव
है.नहीं,यह
बताने
की
कोशिश
की
गयी
की
संविधान
केवल
हिन्दुत्त्व
के
पुनीत
उद्धरणों
से
ही
सुसज्जित
है.अगर
ऐसा
नहीं
हैतो
क्या
इन
का
संविधान
के
प्रेत्म्ब्ले में अस्थान अवश्य
पाता. आप विश्वाश करें
.मुझे
खुशी
होगी
.इन्ही
भावनाओं
से
देश
का
शासन चले .यही अपेक्षा की
जा
सकती
है.
समन्दरों से उसे ताल्लुक ज़रा भी नहीं i वो झील है तू गुहर क्यों तलाश करता है.

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